बोन टीवी में होम्योपैथी की बजाय एलोपैथी पर करें भरोसा
सुमन कुमार
टीबी या क्षय रोग शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है मगर हड्डियों में होने वाला टीबी सबसे खतरनाक होता है। अनुमान के अनुसार भारत की आबादी का कुल एक प्रतिशत हिस्सा टीबी से ग्रसित है और इसमें सबसे बडी संख्या फेफड़ों के टीबी की है ओर दूसरे नंबर पर हड्डियों की टीबी का नंबर आता है।
डेढ़ साल लग सकता है ठीक होने में
आर्थराइटिस फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष वरिष्ठ हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. सुशील शर्मा के अनुसार आमतौर पर फेफडों में क्षय रोग होने पर उसका इलाज 6 से 9 महीनों तक लगातार दवाई खाने पर हो जाता है मगर हड्डियों की टीबी को ठीक होने में एक से डेढ साल तक सकता है।
बोन टीबी एक संक्रामक रोग है और खांसी तथा बलगम से इसके कीटाणु फैलते हैं। कोई भी व्यक्ति जिसके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो वह इसका शिकार बन सकता है। टीबी के कीटाणु शरीर में प्रवेश कर खून के द्वारा पूरे शरीर में फैल जाते हैं। हड्डियों में यह आमतौर पर जोडों के बीच की झिल्ली को अपना पहला शिकार बनाते हैं। हालांकि कई बार यह हड्डियों के बीच भी पहुंच जाते हैं। इस मामले में सबसे खतरनाक स्थिति होती है रीढ की हड्डी का संक्रमित होना। यह संक्रमण मरीज को लकवाग्रस्त भी कर सकता है।
बच्चों को ज्यादा खतरा
जैसा कि इस बीमारी का नाम है, यह जिस भी हिस्से में होता है उसका क्षय करना शुरू करता है। यदि समय रहते इसका इलाज न किया जाए तो हड्डियां पहले कमजोर होनी शुरू होती हैं और फिर टूट जाती हैं। फेफडों की टीबी के विपरीत चूंकि इस बीमारी का एक नजर में पता नहीं चलने से कई बार इलाज तब शुरू होता है जब कीटाणु हड्डी को बहुत हद तक नुकसान पहुचा चुके होते हैं। यह बीमारी किसी भी आयु में हो सकती है मगर सबसे नुकसानदेह है बच्चों में। दरअसल, बच्चों की हड्डियां पूरी तरह विकसित नहीं होती हैं और इस स्थिति में यदि उनमें टीबी हो जाए बच्चा पूरी जिंदगी के लिए अपाहिज हो सकता है।
वैसे बड़े लोगों में भी इसका नुकसान कम नहीं होता। उनमें भी समय से इलाज नहीं होने पर पहले हड्डी टूट जाती है और कई मामलों में तो हड्डी मृत हो जाती है। जहां तक इलाज का सवाल है तो यह बीमारी की स्थिति पर निर्भर करता है। यदि शुरूआती अवस्था में इसका पता चल जाए तब तो सिर्फ दवाइयों से इलाज किया जा सकता है। मगर यदि टीबी की वजह से हड्डी टूट गई हो तो दो तरफा इलाज किया जाता है। सबसे पहले तो टूटी हड्डी पर प्लास्टर लगा कर उस हिस्से को पूरा आराम दिया जाता है और साथ ही टीबी के कीटाणुओं को मारने के लिए टीबी की दवा चालू की जाती है। कई मामलों में जब बहुत दिनों तक मरीज टीबी का इलाज नहीं कराता है तो ऑपरेशन के द्वारा किटाणुओं की सफाई की जाती है। जाहिर है कि यह कष्टदायक स्थिति होती है।
क्या कहते हैं होम्योपैथ
वरिष्ठ होम्योपैथी चिकित्सक डॉ. बलबीर कसाना के अनुसार बोन टीबी का अर्थ है हड्डी में टीबी के कीटाणुओं का संक्रमण। यह बलगम के द्वारा फैलता है और शरीर में अपनी जगह बना लेता है। फिर हड्डियों तक पहुंचकर उन्हें गलाने लगता है। इस बीमारी के आम लक्षण हैं संक्रमित हड्डी के पास गांठ या सूजन, दर्द, शाम के समय हलका बुखार, बदन में टूटन आदि। यह चूंकि आम बीमारी नहीं है और धीरे-धीरे शरीर में जडें जमाता है इसलिए इसका पता भी आसानी से नहीं चलता। इसके लिए प्रभावित हड्डी का एक्सरे, एमआरआई, मांटोक्स टेस्ट तथा एलीजा टेस्ट कराया जाता है।
यह निश्चित हो जाने पर कि हड्डी टीबी से संक्रमित है सबसे पहले तो मरीज को बचाव वाले उपाय बनाए जाते हैं। इसके तहत पूरी तरह आराम, शराब-सिगरेट-तंबाकू का सेवन बंद और बाहरी खाने से परहेज आदि की सलाह दी जाती है। जहां तक इलाज का सवाल है, डॉक्टर कसाना कहते हैं कि इसका सबसे कारगर इलाज एलोपैथी में ही है। होम्योपैथी में बचाव के लिए और भविष्य में यह बीमारी न हो इसके लिए कुछ दवाइयां दी जाती हैं जो कि एलोपैथी की दवाइयों के साथ भी दी जा सकती है। यदि कोई होम्योपैथी चिकित्सक यह दावा करे कि वह होम्योपैथिक दवाओं से हड्डियों की टीबी का इलाज कर देगा तो उस पर भरोसा नहीं करना ही ठीक होगा।
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